20 जनवरी 1948 को 6 लोग गांधीजी की हत्या करने गए थे, लेकिन नाकाम रहे; 10 दिन बाद गोडसे ने उन पर 3 गोलियां चलाईं।
तारीख थी 30 जनवरी 1948 और जगह- दिल्ली का बिड़ला हाउस। शाम के 5 बजकर कुछ मिनट ही हुए थे। महात्मा गांधी रोज की तरह बिड़ला हाउस के प्रार्थना स्थल पहुंचे। उनका एक हाथ आभा बेन तो दूसरा हाथ मनु बेन के कंधे पर था। उस दिन गांधीजी को वहां आने में थोड़ी देर हो गई थी। गांधीजी जब बिड़ला हाउस पहुंचे, तब उन्हें गुरबचन सिंह लेने आए। गांधीजी अंदर प्रार्थना स्थल की तरफ चले गए। गांधीजी ने फिर अपने दोनों हाथ जोड़े और भीड़ का अभिवादन किया। तभी भीड़ में से एक व्यक्ति निकलकर गांधीजी के सामने आया। उसका नाम नाथूराम गोडसे था। नाथूराम ने दोनों हाथ जोड़ रखे थे और हाथों के बीच में रिवॉल्वर छिपा रखी थी।
कुछ ही सेकंड में नाथूराम ने रिवॉल्वर तानी और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी पर चला दीं। गांधीजी के मुंह से ‘हे राम…’ निकला और वे जमीन पर गिर पड़े। गांधीजी को अंदर ले जाया गया, लेकिन थोड़ी ही देर में डॉक्टरों ने गांधीजी को मृत घोषित कर दिया। फरवरी 1949 में आए महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े फैसले को पढ़कर भास्कर ने यह पता लगाने की कोशिश की कि किस तरह से यह षड्यंत्र रचा गया था।
गोडसे और नारायण आप्टे दोषी करार दिए गए। उन्हें 15 नवंबर 1949 को फांसी हुई। ये आजाद भारत की पहली फांसी थी। करकरे, मदनलाल, गोपाल गोडसे, डॉ. परचुरे और शंकर को उम्रकैद हुई। वीर सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
#WATCH Prime Minister Narendra Modi pays tribute to Mahatma Gandhi at Raj Ghat, Delhi on his death anniversary. pic.twitter.com/xmfThc5jeL
— ANI (@ANI) January 30, 2020